• क्या भारत फोल्क्सवागन को 11,600 करोड़ टैक्स नोटिस पर राहत देगा

    जर्मन कार कंपनी फोल्क्सवागन 11,600 करोड़ रुपये के टैक्स नोटिस का मामला भारतीय कोर्ट में लड़ रही है. कंपनी का कहना है कि यह मामला ऑटोमेकर के लिए जीवन-मरण का मामला है

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    जर्मन कार कंपनी फोल्क्सवागन 11,600 करोड़ रुपये के टैक्स नोटिस का मामला भारतीय कोर्ट में लड़ रही है. कंपनी का कहना है कि यह मामला ऑटोमेकर के लिए जीवन-मरण का मामला है.

    भारत सरकार ने बॉम्बे हाई कोर्ट को बताया कि 1.4 अरब डॉलर यानी करीब 11,600 करोड़ रुपये के टैक्स नोटिस को रद्द करने की फोल्क्सवागन की मांग पर सहमति जताने से "विनाशकारी परिणाम" होंगे और इससे कंपनियां सूचना छिपाने और जांच में देरी करने के लिए प्रोत्साहित होंगी.

    आयात शुल्क से संबंधित टैक्स की भारत की अब तक की सबसे अधिक टैक्स डिमांड फोल्क्सवागन के 12 वर्षों की जांच के बाद आई है और इसने लंबी जांच को लेकर विदेशी निवेशकों के डर को फिर से जगा दिया है.

    टैक्स नोटिस से हिल गई जर्मन कार कंपनी

    जर्मन कार कंपनी ने इस मामले को अपने भारतीय कारोबार के लिए "जीवन-मरण का मामला" बताया है और बॉम्बे हाई में भारतीय टैक्स अथॉरिटी के खिलाफ मुकदमा लड़ रही है. फोल्क्सवागन इंडिया पर आरोप है कि उसने फोल्क्सवागन, स्कोडा और ऑडी कारों को अलग-अलग पुर्जों के रूप में आयात कर टैक्स में हेरफेर किया. पूरी तरह से तैयार कारों पर 30-35 फीसदी आयात शुल्क लगता है, लेकिन अलग-अलग पार्ट्स लाने पर केवल 5-15 फीसदी टैक्स देना पड़ता है. अधिकारियों का आरोप है कि कंपनी ने "लगभग पूरी कार" अलग-अलग हिस्सों में आयात कर टैक्स बचाने की कोशिश की.

    भारतीय टैक्स अथॉरिटी ने 78 पन्नों के दस्तावेज में हाई कोर्ट को बताया कि फोल्क्सवागन ने अपने आयातों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी और डेटा को रोककर देरी की है. टैक्स अथॉरिटी ने 10 मार्च को अपनी दलील में कहा था कि कार निर्माता के तर्क को स्वीकार करने से आयातकों को महत्वपूर्ण जानकारी को दबाने और फिर दावा करने की अनुमति मिल जाएगी कि टैक्स विभाग द्वारा जांच करने की समय-सीमा बीत चुकी है. टैक्स विभाग का कहना है कि इसके "विनाशकारी परिणाम" होंगे.

    फोल्क्सवागन और भारत सरकार ने इस बारे में समाचार एजेंसी रॉयटर्स के सवालों के जवाब नहीं दिए हैं.

     

    सरकार राहत देने को नहीं तैयार

    फोल्क्सवागन भारत के कार बाजार में एक छोटी कंपनी है. यह दुनिया में तीसरा सबसे बड़ी कार कंपनी है, और इसका ऑडी ब्रांड मर्सिडीज और बीएमडब्ल्यू जैसे लक्जरी समकक्षों से पीछे है. अगर कंपनी दोषी पाई जाती है तो उसे जुर्माने सहित कुल 2.8 अरब डॉलर यानी करीब 23,200 करोड़ रुपये तक चुकाने पड़ सकते हैं.

    भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरल नियमों और नौकरशाही की कम बाधाओं के वादों के साथ विदेशी निवेशकों को लुभा रहे हैं. हालांकि टैक्स पर लंबी जांच जो सालों तक चलने वाले मुकदमों का कारण बन सकती है, निवेशकों के लिए एक बड़ा मुद्दा बनी हुई है.

    टैक्स विभाग ने अपनी ताजा दलील में कहा है कि फोल्क्सवागन "शिपमेंट समीक्षा को पूरा करने के लिए आवश्यक जानकारी और दस्तावेज" केवल किस्तों में ही पेश कर रही थी. भारत सरकार चाहती है कि कोर्ट फोल्क्सवागन को निर्देश दे कि वह प्रक्रियाओं का पालन करे और अपने टैक्स नोटिस का जवाब प्राधिकरण के साथ बातचीत करके दे, ना कि जजों के सामने.

    कंपनी ने कोर्ट में अपनी दलील में कहा कि उसने सभी टैक्स नियमों का पालन किया है. उसका कहना है कि उसने कभी भी कार पार्ट्स को "किट" के रूप में आयात नहीं किया, बल्कि अलग-अलग पार्ट्स लाकर लोकल कंपोनेंट्स के साथ कार बनाई.

    बकाया टैक्स कैसे पूरा करेगी फोल्क्सवागन

    फोल्क्सवागन इंडिया की 2023-24 की कुल बिक्री 2.19 अरब डॉलर रही और कंपनी को केवल 1.1 करोड़ डॉलर का शुद्ध मुनाफा हुआ. ऐसे में 2.8 अरब डॉलर का टैक्स देना कंपनी पर भारी पड़ेगा.

    कंपनी पहले से ही दुनियाभर में लागत में कटौती कर रही है. यूरोप में मांग घटने के कारण दिसंबर में उसने जर्मनी में 35,000 नौकरियां खत्म करने की घोषणा की थी. चीन में भी कंपनी अपनी कुछ संपत्तियां बेचने की योजना बना रही है.

    भारत में करों की उच्च दर और लंबे कानूनी विवाद विदेशी कंपनियों के लिए चिंता का विषय रहे हैं. टेस्ला जैसी कंपनियां भी भारत के ऊंचे करों की शिकायत कर चुकी हैं. अगस्त 2024 में, भारतीय आईटी कंपनी इंफोसिस को लगभग 4 अरब डॉलर (करीब 32,000 करोड़ रुपये) के कर नोटिस का सामना करना पड़ा.

    कंपनी ने इस मांग का विरोध किया, जिसके बाद सरकार ने इसे वापस लेने पर विचार किया. 2012 में लागू किए गए एक विवादास्पद कानून के तहत, वोडाफोन जैसी कंपनियों को भी कर विवादों का सामना करना पड़ा था.

    केयर्न एनर्जी ने 2015 में भारत सरकार के खिलाफ 1.4 अरब डॉलर के कर विवाद के कारण अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता का सहारा लिया. 2020 में, मध्यस्थता न्यायाधिकरण ने केयर्न के पक्ष में फैसला दिया, लेकिन भारत सरकार ने इस फैसले को चुनौती दी थी.

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